Kosi Times
तेज खबर ... तेज असर

ये हमारा Archieve है। यहाँ आपको केवल पुरानी खबरें मिलेंगी। नए खबरों को पढ़ने के लिए www.kositimes.com पर जाएँ।

- Sponsored -

- Sponsored -

- sponsored -

किसानों के लिए क्यों नहीं बजती थाली और ताली

- Sponsored -

हेमलता म्हस्के/ अपने देश में जब कोरोना से बचाव के लिए लॉक डाउन की घोषणा हुई तो ज्यादातर लोग राशन के लिए दुकानों कि ओर दौड़े। लोगों की जान किसानों द्वारा उत्पादित अनाज ही बचा रहे हैं। दवाइयां तो अस्पतालों में दी जा रही हैं लेकिन आज अनाज ही सड़कों पर, गलियों और मोहल्लों में वितरित किए जा रहे हैं। सभी लोग राष्ट्रीय तालाबंदी में घर से किसानों द्वारा उत्पादित अनाज, सब्जी और फल के लिए बाहर निकलते हैं और अपनी जान बचा रहे हैं।

आज अगर हम खाद्यान्न के मामले में आत्म निर्भर नहीं होते तो कोरोना के कारण भयावह हो गए माहौल में हमारी हालत कितनी खराब हो गई होती! अगर दवाइयों और चिकित्सा के उपकरणों व जरूरी रक्षा किट की तरह अनाज की भी कमी होती तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश के लोगों की क्या हालात होती। सरकारें बड़े फक्र के साथ कहती हैं कि हम अनाज के मामले में न केवल आत्मनिर्भर हैं बल्कि सौ से अधिक देशों में भी अनाज का निर्यात करते हैं। हम दुनिया में अपने देश को शिक्षा और अन्य क्षेत्रों में बहुत पीछे पाते हैं लेकिन एकमात्र खाद्य उत्पादन के निर्यात के मामले में ही हम दुनिया के सैकड़ों देशों को पीछे छोड़ते हुए सातवें स्थान पर हैं।

इसे भी पढ़िए : कोरोना को अब पहचानने के नौ लक्षणों से 

भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि की अहम भूमिका है। 2011 की जनगणना के मुताबिक देश की आबादी का लगभग 54.6 प्रतिशत कृषि और इससे जुड़ी गतिविधियों में लगा है और देश के सकल मूल्य संवर्धन 2016-2017 में इसकी हिस्सेदारी 17.4 प्रतिशत है।

अनाज के मामले में किसान रिकार्ड उत्पादन कर देश को मजबूती देते आए हैं। किसानों के अतुलनीय योगदानों के बावजूद हम उन्हें कुछ नहीं देते। बल्कि हम उनका अपमान करते आ रहे हैं। मौजूदा दौर में हम डॉक्टरों सहित पुलिस के जवानों के लिए ताली,थाली और शंख बजा कर अभिनंदन कर उनका हौसला बढ़ा रहे हैं लेकिन सालों भर कड़ी मेहनत कर अनाज पैदा करने वाले किसानों को रामभरोसे छोड़ कर उन्हें आत्म हत्या करने के लिए विवश करते आ रहे हैं।

इसे भी पढ़िए : मधेपुरा में मिला दूसरा कोरोना पॉजिटिव 

अपने देश में लाल बहादुर शास्त्री ही ऐसे प्रधानमंत्री थे,जिन्होंने जय जवान के जय किसान का नारा दिया था। जवानों ने देश की रक्षा की तो किसानों ने देश को अनाज के मामले में आत्म निर्भर बनाया। जवानों की जय जयकार आज भी होती है पर किसानों की नहीं। किसानों की हालत लगातार खराब होती जा रही है।

किसान पिछले कई सालों से लगातार आत्महत्या करते आ रहे हैं लेकिन हम उनकी इस विवशता पर सोचने के लिए तैयार नहीं हैं। किसानों द्वारा इतनी बड़ी संख्या में आत्महत्या करने के बावजूद अनेक कृषि अनुसंधान संस्थान, नीति नियोजन निकायों और राहत कार्यक्रमों ने कोई ध्यान नहीं दिया। कारपोरेट के कर्जे माफ़ किए जाते हैं लेकिन किसानों को कर्जमुक्त करने का प्रयास नहीं किया जाता। किसानों को थोड़ी राहत उनकी उपज को न्यूनतम समर्थन मूल्य देने से मिलती है उसे भी ख़तम करने की साज़िश की जा रही है।

विज्ञापन

विज्ञापन

इसे भी पढ़िए : एसपी से लगाया न्याय की गुहार

कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि अपने देश में अब आर्थिक परिकल्पना ऐसी हो गई है,जिससे खेती खत्म हो और बड़ी संख्या में किसान तबाह हो ताकि शहरों के विकास के लिए सस्ते मजदूर मिल सके। लॉक डाउन के लागू होने के बाद शहरों से गांवों की ओर वापस जाने वाले मजदूर पहले खेती से जुड़े थे। वे खेती से उखड़ कर शहरों में सस्ते मजदूर ही बनने आए थे। अब वे गांवों की ओर वापस जा रहे हैं। गांवों के विकास के लिए सरकारी बजट में लगातार कमी करती जा रही है। हालांकि सरकार किसानों की आमदनी डबल करने की बात करती रही है लेकिन उनका वादा अभी तक सिरे नहीं चढ़ पाया है।

मौजूदा लॉक डाउन के दौर में पहले से ही तबाह किसानों की हालत और भी खराब हो गई है। अव्यवस्था से जूझते हुए उनकी कमर टूट चुकी है। खेतों में फसलें पड़ी हुई हैं लेकिन उसे काटने के लिए मजदूर नहीं हैं। मजदूर कोरोना और पुलिस के डंडे के भय से बाहर नहीं निकल रहे हैं। वे खेतों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं और मशीनों की उपलब्धता भी बहुत कम है। कहा तो जा रहा है कि सरकार कंबाइन मशीनों के आवागमन पर कोई रोक नहीं लगाएगी लेकिन हकीकत यह है कि उन्हें राज्यों की सीमाओं पर ही रोका जा रहा है।

देश में पहले ही भारी बारिश और ओलावृष्टि के कारण किसानों की फसलें बर्बाद हुई हैं। पिछले 60 सालों का अनुभव बताता है कि सरकारी योजनाएं सिर्फ उनके कार्यालयों तक ही सीमित रहती हैं वे कभी भी हकीकत में परवान नहीं चढ़तीं। यही कारण है किसान इस देश में सभी वर्गों में सबसे ज्यादा बदहाल स्थिति में पहुंच गया है। इतिहास बताते हैं कि अपने देश में सबसे मजबूत वर्ग किसान ही होता था। उनके कारण सैकड़ों सालों से ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत थी। साथ ही कृषि केंद्रित संस्कृति विकसित हुई

वरिष्ठ समाज कर्मी रवि नितेश श्रीवास्तव बताते हैं कि जब कोरोना वायरस से बचाव के लिए लॉक डाउन का ऐलान किया गया तो ज्यादातर लोग आनन-फानन में अनाज खरीदने के लिए दुकानों की ओर दौड़ पड़े। अगर किसानों ने खूब मेहनत नहीं की होती तो आज की मौजूदा स्थिति में हमें अनाज उपलब्ध नहीं होता। उनका कहना है कि यही वक्त है कि हम किसानों के प्रति सोचें और उनके प्रति सम्मान का भाव प्रकट करें और संवेदनशील बनें। हमें इस सवाल को हल करना ही होगा कि आखिर किसान अनाज पैदा करके भी क्यों आत्महत्या करने को विवश होते हैं और जूते, कपड़े, घड़ी और अन्य सामान बनाने वाले लोग आत्महत्या नहीं करते।

आज हम राजनीति और सांप्रदायिकता पर रोज चर्चा करते हैं और किसी बेहतर नतीजे तक नहीं पहुंचते। आज लॉक डाउन के समय में जिस अनाज के सहारे हम सब लोग अपने जीवन की गाड़ी आगे खींच रहे हैं उस अनाज को पैदा करने वाले किसान क्यों इतनी बदहाली से घिरे हैं। हम किसानों के बुनियादी सवालों पर क्यों नहीं चर्चा करते हैं। महत्वपूर्ण योगदान होने के बावजूद किसान आज हमारी चर्चा के केंद्र में क्यों नहीं है? इस तरह के अनेक सवाल आज के समय में सोचना बहुत जरूरी है अगर हम किसानों के महत्व को नहीं समझेंगे और समय रहते उनकी समस्याओं के समाधान के लिए सरकार और समाज को विवश नहीं करते हैं तो फिर हमारे जीने का आधार ही खत्म हो जाएगा।

लॉक डाउन के दौरान देश के विभिन्न राज्यों में भारी वर्षा और ओला वृष्टि के कारण किसानों की फसलों को भारी नुकसान हुआ है। खेतों से लेकर मंडियों तक तबाही ही तबाही। छोटे , मंझोले और बड़े सभी किसान परेशान हैं। हरियाणा के किसान गेहूं लेकर मंडियों में पहुंचे हैं,उसकी खरीद नहीं हो रही है। उत्तर प्रदेश में गाजियाबाद के किसानों की टमाटर की फसल खराब हो गई। वे उसे सड़कों पर फेक रहे हैं,लॉक डाउन की वजह से समय पर कीटनाशकों का छिड़काव नहीं कर सके। बचे हुए टमाटर के खरीदार नहीं मिल रहे। बंगाल,बिहार,असम और ओडिशा में मजदूर गायब। राजस्थान में फसल कटाई में देरी हुई। मंडियां बंद हैं। सरसों की फसल कट गई, पर वह खेतों से मंडी नहीं पहुंच पाई है। चना,जौ और गेहूं की फसलों की कटाई के लिए मजदूर नहीं हैं।

महाराष्ट्र में घर में रखे कपास में कीड़े लग गए हैं। महाराष्ट्र की किसान नेता प्रतिभा शिंदे के मुताबिक आदिवासी किसानों की तेंदू पत्ता और महुआ की फसल तैयार है पर पुलिस उनको मंडियों तक जाने नहीं देती। खरबूजा तैयार है, पर बिक्री नहीं हो रही है,किसान उसे सड़कों पर फेक रहे हैं। केले के दाम भी ठीक नहीं मिले। व्यापारी किसानों की मजबूरी का फायदा उठाने से बाज नहीं आते। उत्तर प्रदेश,पंजाब,तेलांगना और आंध्र प्रदेश में भी किसान बर्बाद हो गए हैं। किसान नेताओं का कहना है माल की आवाजाही में हो रही दिक्कत ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर बुरा असर डाला है । किसान आत्म हत्या करने की नौबत तक पहुंच सकते हैं। कई जगहों पर किसान फूलों के हरे भरे खेत स्वयं नष्ट कर रहे हैं या औने पौने दाम पर बेच रहे हैं। बीमा कंपनियों की ओर से आकलन नहीं होने से उन्हें मुआवजा मिलना भी मुश्किल हो गया है।

लगता है खाद्य संकट दस्तक दे रहा है। जल्द कदम नहीं उठाए गए तो भुखमरी के मामले सामने आ सकते हैं । बंगाल के झारग्राम और सुंदरवन डेल्टा जैसे सुदूरवर्ती इलाकों में खाने-पीने की चीजों की किल्लत हो रही है। लॉक डाउन खास कर आम के किसानों के लिए एक बड़ी चुनौती बन कर आया है। महाराष्ट्र में होने वाले अल्फांसो आम का करीब 55% हिस्सा मुंबई , पुणे और कोल्हापुर में बेचा जाता है पर इन शहरों के बाज़ार बंद हैं। किसान के लिए तबाही का दौर शुरू हो गया है। देखना है कि शहरीकरण पर आमादा सरकारें किसानों का कितना भला करेगी ।

- Sponsored -

- Sponsored -

- Sponsored -

- Sponsored -

Get real time updates directly on you device, subscribe now.

आर्थिक सहयोग करे

- Sponsored -

Comments
Loading...