बिहार सरकार पचास पार के कर्मियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति का फरमान जारी कर संविदा के शोषणमूलक नीतियों को आगे बढ़ाने की कर रही है साजिश
आलोक आजाद बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ केे प्रमंडलीय सह संयोजक हैं।साथ ही साथी परिषद के अध्यक्ष सह सामाजिक कार्यकर्ता हैंं।अलग अलग विधाओं में लगातार लिख कर सरकार का ध्यान आकृष्ट करा रहे हैं
कोसी टाइम्स ब्यूरो@पटना
साथी परिषद के अध्यक्ष सह सामाजिक कार्यकर्ता आलोक आजाद ने 50 वर्ष के उपरांत सरकारी अधिकारियों तथा कर्मचारीयों को जबरन सेवानिवृत करने के फैसले पर विरोध जताते हुए सरकार से फैसले को वापस लेने की मांग की है।
उन्होंने कहा की इस आदेश के बाद राज्य के सभी कर्मचारियों में डर का माहौल है।राज्य सरकार के इस आदेश का अधिकारी अपने मातहत कर्मचारियों पर गलत इस्तेमाल करेंगे।इसको लेकर सरकारी कर्मचारियों में आक्रोश है क्योंकी जो आदेश दिया गया है कि उसमें बताया गया है कि कम से कम तीन माह पूर्व सूचना और तीन माह के वेतन देकर 30 साल की सेवा या 50 साल पार करने वाले कर्मचारी को सेवानिवृत्ति की जा सकती है,जो कि गलत है।
उन्होंने कहा की बिहार सरकार पचास पार के कर्मियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति का फरमान जारी कर कर्मचारी संगठनों के महत्त्व को खत्म करने, श्रमिक कानून को कमजोर करने, सरकारी सेक्टर के जॉब्स को खत्म करने, ठेका, संविदा के शोषणमूलक नीतियों को आगे बढ़ाने की साजिश कर रही है। अनिवार्य सेवानिवृत्ति के संकल्पपत्र ने सरकार का घोर कर्मचारी,श्रमिक तथा शिक्षक एवं पुस्तकालयाध्यक्ष विरोधी चेहरा उजागर कर दिया है। हमसभी सरकार के इस फैसले का मजबूती से विरोध करेंगे।
उन्होंने कहा की जबतक कर्मचारी खुद को सेवा के लिए अक्षम महसूस न करें या जबतक 60 वर्ष की आयु तक सेवा पुरी नहीं हो तबतक उनकों हटाना उचित नहीं है।
उन्होंने कहा की 50 साल में कर्मचारी बुढा़ हो जाता है और 50 साल के बाद भी नेता जवान रहें,ये कैसे हो सकता है।यदि 50 वर्ष के बाद कर्मचारियों को जबरन रिटायरमेंट दिया जा सकता है तो 50 पार के मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री,शिक्षा मंत्री तथा अन्य मंत्रियों तथा आगामी विधानसभा चुनाव में 50 पार के उम्मीदवार को टिकट नहीं देकर सरकार को इसकी शुरुआत करनी चाहिए तब 50 पार के कर्मचारियों पर यह नियम लागू करना चाहिए।
आलोक ने सरकार से इस पत्र पर पुनर्विचार करते हुए इस आदेश को अविलंब रद्द करे ताकी सभी सरकारी अधिकारी, कर्मचारी तथा शिक्षक एवं पुस्तकालयाध्यक्ष बिना किसी दवाब के निष्पक्ष कार्य कर सकें।