“मज़हबी रंग”
कभी-कभी अजीब लगता है
देख कर हो जाता हूं दंग
मजहब बताने लगा है
हमारा और तुम्हारा रंग
देखो कहते है कितनी
अकड़ और शान से हम
भगवा हो गए हो तुम
हरा रंग है हम
भूल गए बचपन के दिन
खेला करते थे संग
न था कोई हमारा मज़हब
न था कोई हमारा रंग
सोचो अपने देश की
देखो प्रकृति के रंग
कुछ नही होता दोस्त
हमारा और तुम्हारा “मज़हबी रंग”