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मधुश्रावणी को लेकर सुपौल की नवविवाहिता महिला में उत्साह

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संजय कुमार भगत कोसी टाइम्स,छातापुरसुपौल

सावन महीने के कृष्ण पक्ष पंचमी से आरंभ एवं शुक्ल पक्ष तृतीया को सम्पन्न होने वाली मिथिला संस्कृति व भक्ति का पर्व मधुश्रावणी पूजा प्रारम्भ होते ही प्रखंड क्षेत्र में उत्साह का माहौल व्याप्त है। नव विवाहित महिलाओं के द्वारा किये जाने वाले इस पूजा का विशेष महत्व है। नव विवाहित महिलायें प्रात: ब्रह्ममुहूर्त में पवित्र गंगा स्नान करने के पश्चात अरवा भोजन ग्रहण कर नहाय खाय के साथ पूजन आरंभ करेंगी। यह पूजा 13 दिनों तक चलेगीl इस बार मधुश्रावणी पूजा कुल 13 दिनों तक चलेगी। 20 जुलाई को नहाय खाय के बाद 21 जुलाई से विधिवत इस पूजा का आरंभ हो चुका है ,जो कि 13 दिनों तक चलने के बाद 3 अगस्त को समाप्त होगीl इस बार प्रथम बार ऐसा योग बना है कि 13 दिनों तक ही यह पूजा चलेगी। इससे पूर्व के वर्षों में यह 14 या 15 दिनों तक चलता था।

क्या कहती हैं नव विवाहिताएँ 

प्रखंड की नवविवाहित महिलाओं रविन्दा कुमारी, सोनी झा, पुष्पा झा, पुष्पांजलि ,निक्की कुमारी,बिंदा कुमारी, ब्यूटी कुमारी आदि ने बताया कि यह पूजा एक तपस्या के समान है। इस पूजा में लगातार 13 दिनों तक नव विवाहित महिलायें प्रतिदिन एक बार अरवा भोजन करती हैं। इसके साथ ही नाग-नागिन ,हाथी ,गौरी ,शिव आदि की प्रतिमा बनाकर प्रतिदिन कई प्रकार के फूलों,मिठाईयों एवं फलों से पूजन किया जाता है। सुवह-शाम नाग देवता को दूध लावा का भोग लगाया जाता है।

क्या है पूजा का है महत्व 

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मधुश्रावणी पूजन का जीवन में काफी महत्व माना जाता है। इसके महत्व को बताते हुए पंडित चन्द्रभूषण मिश्र , कुंदन कहते कि महिलाओं के द्वारा किया जानेवाला यह पूजा पति के दीर्घायु तथा सुख शांति के लिये की जाती है। पूजन के दौरान मैना पंचमी, मंगला गौरी ,पृथ्वी जन्म ,पतिव्रता,महादेव कथा ,गौरी तपस्या ,शिव विवाह ,गंगा कथा,बिहुला कथा तथा बाल वसंत कथा सहित 14 खंडों में कथा का श्रवण किया जाता है।गांव समाज की बुजुर्ग महिला कथा वाचिकाओं के द्वारा नव विवाहिताओं को समूह में बिठाकर कथा सुनायी जाती है।पूजन के सातवें, आठवें तथा नौवें दिन प्रसाद के रुप में घर जोड़,खीर एवं गुलगुला का भोग लगाया जाता है।प्रतिदिन संध्याकाल में महिलायें आरती,सुहाग गीत तथा कोहवर गाकर भोले शंकर को प्रसन्न करने का प्रयत्न करती हैं।इस पूजन में मायका तथा ससुराल दोनों पक्षों की भागीदारी आवश्यक होती है। पूजन करने वाली नव विवाहिताएँ ससुराल पक्ष से प्राप्त नये वस्त्र धारण करती हैं। जबकि प्रत्येक दिन पूजा समाप्ति के बाद भाई के द्वारा पूजन करने वाली महिला को हाथ पकड़ कर उठाया जाता है।

टेमी दागने की है परंपरा 

पूजा के अंतिम दिन पूजन करने वाली महिला को कठिन परीक्षा से गुजरना पड़ता है। टेमी दागने की परंपरा में नव विवाहिताओं को गर्म सुपारी,पान एवं आरत से हाथ एवं पांव को दागा जाता है।इसके पीछे मान्यता है कि इससे पति पत्नी का संबंध मजबूत होता है।

पकवानों से सजती है डलिया

पूजा के अंतिम दिन 14 छोटे बर्तनों में दही तथा फल-मिष्टान सजा कर पूजा किया जाता है।साथ ही 14 सुहागन महिलाओं के बीच प्रसाद का वितरण कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। पर्व को लेकर छातापुर प्रखंड के चकला, डहरिया, चुन्नी, लालगंज, झखरगढ़, सोहटा, मधुबनी आदि पंचायतों में नवविवाहिता दमें खासा उत्साह है।

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