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पति की लंबी सुहाग के लिए 13 दिन तक व्रत रख मनाती है मधुश्रावणी पर्व

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सुभाष चन्द्र झा
कोसी टाइम्स@सहरसा

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मिथिलांचल के सांस्कृतिक एवं अध्यात्मिक जीवन में नवविवाहिताओ के लिए मधुश्रावणी पर्व का महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। यह पर्व केवल मिथिलांचल में ही मनाया जाता है।यह पर्व श्रावण मास की कृष्ण पक्ष में मैना पंचमी 22 जुलाई से शुरू होकर शुक्ल पक्ष में तीन अगस्त मनाया जा रहा है ।इस पर्व के दौरान सभी नवविवाहिता नव वस्त्र पहन एवं सोलह श्रृंगार कर फूल बेलपत्र तथा बाँस के पत्तों को चुन चुन कर लाते हैं तथा बासी फूल से बिषहरा की पूजा करते हैं । नवविवाहिता यह व्रत अपने पति की किसी भी अनहोनी से रक्षा की कामना के लिए करती है ।इस पर्व में पहले दिन से तेरह दिनों तक क्रमशः मैना पंचमी व विषहरा जन्म की कथा ,बिहुला मनसा बिषहरी व मंगला गौरी कथा,पृथ्वी की कथा ,समुद्र मंथन कथा,सतीक पतिव्रता ,महादेवक पारिवारिक दंतकथा,गंगा गौरी जन्म कथा ,गौरीक तपस्या विवाह की कथा ,कार्तिक गणेश जन्म की कथा,गोसाऊनिक गीत ,विषहरा भगवती गीत,आदि गीत गाये जाते हैं। पूजा के दौरान नवविवाहिताओ को जलती दीप से बाती (टेमी) से जंघा पर दागा जाता है । अहिबात की परीक्षा के लिए टेमी दागने की प्रथा आज भी चल रही है। पूजा समाप्त होने के उपरांत सुहागन महिलाओं को तेल सिन्दूर तथा प्रसाद का वितरण किया जाता है।तेरह दिनों तक चलने वाली इस पर्व प्रत्येक दिन धार्मिक पौराणिक एवं प्रचलित दंतकथा नवविवाहिता को महिलाएं पुरोहित ही सुनाती है। कथा समापन के पश्चात कथावाचक महिला को नववस्त्र एवं दान दक्षिणा दिया जाता है। साथ ही नवविवाहिता के ससुराल से सामग्री से समाज के लोगों को भी श्रद्धापूर्वक भोज करते हैं ।

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