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जीवन में सफल होने के लिए अनुशासन को महत्व दें

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संजय कुमार सुमन 

साहित्यकार 

व्यस्त जीवन होने के कारण लोगों को अपने लिए समय नहीं मिल पाता है और इस वजह से उनकी दिनचर्या प्रभावित होती है। जीवन में सफल होने के लिए आपको अनुशासित होना जरूरी होता है। चाहे आपकी पर्सनल लाइफ हो या फिर प्रोफेशनल।  आपको अनुशासन बनाएं रखने की जरूरत होती है। आपकी सोच, भावनाएं, व्यवहार और आदतें, इन सब पर आपको ध्यान रखना चाहिए, तब ही आप अपने जीवन में एक सफल इंसान बन सकते हैं। सफल और अनुशासित जीवन के लिए आपको अपनी दैनिक दिनचर्या और आदतों में बदलाव लाने की जरूरत है और सबके जरूरी यह है कि आप खुद को आंकें। जो लोग अनुशासित होते हैं वो अपने लक्ष्यों को जल्दी हासिल कर लेते हैं। अनुशासित जीवन के लिए आपको सबसे पहले खुद को आंकने की जरूरत है। इससे आपको अपने अंदर की अच्छाई और बुराई दोनों के बारे में पता चल जाता है। यदि आप कोई ऐसा काम कर रहे हैं जो आपको सफल बनने से रोकते हैं तो आपको उन कामों को करने से बचना चाहिए। जीवन में सफल बनने के लिए और जीवन को अनुशासित बनाने के लिए आपको सकारात्मक सोच रखना चाहिए। इससे आपको अपने जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलेगी और अपने लक्ष्यों को हासिल करने की हिम्मत मिलेगी। सकारात्मक सोच आपके लिए जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है।

अनुशासन का पालन करने का अर्थ यह नहीं है कि आप नियमों और तौर-तरीकों के गुलाम हो गए और आपकी आजादी छिन गई। यह सोच गलत है। अगर ट्रेन को पटरी से उतार दें, तो वह आजाद हो जाएगी। लेकिन जरा सोचिए, ऐसे में क्या वह चल पाएगी? अगर इंसान खुद ही अपना ट्रैफिक कानून बनाने लगे, तो फिर ट्रैफिक का क्या हाल होगा, आप इसका सहज ही अनुमान लगा सकते हैं। अनुशासन आजादी में खलल नहीं है, बल्कि नियम-कानून के अनुसार किसी काम को करने की सीख है। इसलिए अनुशासित बनें और लक्ष्य पर निगाह रखें, आपको सफल होने से कोई रोक नहीं सकता।अनुशासन संस्कृति का मेरूदंड है। सड़क हो या सदन, व्यवसाय हो या खेती, खेल का मैदान हो या युद्ध भूमि अनुशासन के बिना संभव ही नहीं है इस दुनिया की संरचना। अनुशासन विकास-पथ है तो अनुशासनहीनता विनाश को आमंत्रण। ये तमाम बातें सभी जानते हैं लेकिन अपनी नई पीढ़ी में अनुशासन के प्रति भाव जगाने की बात करने वाले लगातार कम हो रहे हैं जबकि युवाओं का व्यवहार अनुशासन से लगातार दूर होता जा रहा है। क्या यह सत्य नहीं कि एक आयु के बाद अनुशासन सीखना कठिन हो जाता है। अनुशासन का पाठ बचपन से परिवार में रहकर सीखा जाता है। विद्यालय जाकर अनुशासन की भावना का विकास होता है। अच्छी शिक्षा विद्यार्थी को अनुशासन का पालन करना सिखाती है। सच्चा अनुशासन ही मनुष्य को पशु से ऊपर उठाकर वास्तव में मानव बनाता है। अनुशासन आज की सबसे महत्वपूर्ण सामाजिक तथा राष्ट्रीय आवश्यकता है क्योंकि यह लक्ष्यों और उपलब्धि के बीच का सेतु है।

विशेषज्ञों का मत हैं, ‘हर माँ-बाप को अपना बच्चा प्यारा होता है, पर इसका मतलब ये नहीं होता कि प्यार में अंधे होकर उसे संस्कार देना ही भूल जाएं। बच्चों को छूट देना चाहिए पर अनुशासन के साथ, क्योंकि जो अभिभावक बच्चों को अनुशासन के साथ आजादी देते हैं वे ही बच्चे संस्कारी व सभ्य होते हैं। हाल ही हुए शोध से यह बात सामने आई है कि वही माता-पिता असंतुष्ट होते हैं जो बच्चों की आदतों को बचपन से अनदेखा करते हैं और उनकी गलतियों पर पर्दा डालते हैं। अभिभावकों को चाहिए कि बच्चों की गलतियों को अनदेखा न करें और न ही हंस कर टालें, बल्कि तुरंत उसे सुधारने का प्रयास करें। बच्चों में अनुकरण करने की प्रवृत्ति होती है। इसलिए बच्चे को अनुशासित करने के लिए आवश्यक है कि पहले आप स्वयं अनुशासित हो क्योंकि जैसा आप व्यवहार करेंगे आपका बच्चा उसका अनुशरण करता है। विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का बहुत महत्व होता है। अनुशासन के द्वारा ही वह स्वयं के लिए उज्जवल भविष्य की संभावना कर सकता है।विद्यार्थी समाज की एक नव-मुखरित कली है।  इन कलियों के अंदर यदि किसी कारणवश कमी आ जाती है तो कलियाँ मुरझा ही जाती हैं, साथ-साथ उपवन की छटा भी समाप्त हो जाती है।यदि किसी देश का विद्यार्थी अनुशासनहीनता का शिकार बनकर अशुद्ध आचरण करने वाला बन जाता है तो यह समाज किसी न किसी दिन आभाहीन हो जाता है।विद्यार्थी हमारे देश का मुख्य आधार स्तंभ है। यदि इनमें अनुशासन की कमी होगी, तो हम सोच सकते हैं कि देश का भविष्य कैसा होगा। अनुशासन प्रिय लोग सभी को बहुत पसंद आते है। अनुशासन व्यक्ति को चरित्रवान और कौशल बनने में मदद करता है। सैनिक जीवन में अनुशासन देखने को मिलता है जिसकी वजह से वो कठिन परिस्थितियों में जी पाते है। खेलों में अनुशासन बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। अनुशासन प्रिय खिलाड़ी ही खेल को जीत सकता है। अनुशासन एक व्यक्ति से लेकर समाज तक सभी के लिए आवश्यक विद्यार्थियों में हर काम समय पर करने की आदत होती है।  वह अपना आज का काम कल पर नहीं टालते। वह दी हुई समय गति में ही कार्य पूरा करने की कोशिश करते है जो कि किसी भी नौकरी पेशे के लिए चुने जाते है।  अनुशासन शब्द दो शब्दों के योग से बना है- अनु और शासन। अनु उपसर्ग है, जिसका अर्थ है- विशेष या अधिक। इस प्रकार से अनुशासन का अर्थ हुआ- विशेष या अधिक अनुशासन। अनुशासन का शाब्दिक अर्थ है- आदेश का पालन या नियम सिद्धांत का पालन करना ही अनुशासन है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि नियमबद्ध जीवन व्यतीत करना अनुशासन कहलाता है। जीवन में अनुशासन की सदैव आश्वयकता होती है, परन्तु विद्यार्थी जीवन में विशेष रूप से इसकी जरूरत पड़ती है। अनुशासन ही किसी व्यक्ति सभ्य नागरिक एवं चरित्रवान बनाने में सहायक है। इसके विपरीत अनुशासनहीन व्यक्ति समाज के लिए हानिकारक होता है और अपने जीवन को भी नष्ट कर लेता है। विद्यार्थी यदि अनुशासनहीन हो जाए, तब तो वह उदण्ड प्रकृति का ही प्रमाणित होता है और वह राष्ट्र की आशाओं को खो बैठता है।

हम सब जानते है कि गांधी जी को अनुशासन बहुत पसंद था।  उनका मानना था कि अनुशासन एक ऐसा क्रम है एक ऐसी नियमित प्रक्रिया है जो कार्य अथवा जीवन की अभिव्यक्ति में सुन्दरता उत्पन्न करती है।  Discipline ही है जो व्यक्ति को व्यवस्थित जीवन व्यतीत करना सीखलाता है और उसके सुख का साधन बनता है।  अनुशासन के महत्व को समझने के लिए गांधी जी से अच्छा उदाहरण और कुछ नहीं हो सकता।

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यह बात उस दौरान की है जब गांधीजी के आश्रम में सभी लोग एक साथ रसोईघर में बैठकर खाना खाते थे और सबके साथ गांधीजी भी खाते थे। किन्तु भोजनालय का एक नियम था कि जो व्यक्ति भोजन आरंभ होने से पहले भोजनालय में नहीं पहुचता था उसे अपनी बारी के लिए बरामदे में इंतजार करना पड़ता था। क्योंकि भोजन प्रारम्भ होते ही रसोईघर के दरवाजे को बंद कर दिया जाता था ताकि समय से न आने वाला व्यक्ति अन्दर न आने पाए।संयोगवश एक दिन गांधीजी को पहुंचने में कुछ क्षणों का विलम्ब हो गया और तब तक रसोई घर का दरवाजा बंद हो चूका था। बापू जी दरवाजे पर ही खड़े होकर प्रतीक्षा करने लगे। उनके एक मित्र ने देखा कि वह रसोई घर के दरवाजे के बाहर खड़े है और वहां बैठने के लिए कोई कुर्सी भी नहीं है। उन्होंने गांधीजी के पास आकर मुस्कुराते हुए कहा कि बापूजी आज तो आप भी गुनहगारों के कठघरें में आ गए। इस पर गांधीजी बोले “ भई ,अनुशासन का पालन करना तो सबका कर्तव्य होता हैं तो मेरा क्यों नहीं ?”

तब मित्र ने कहा “ आप के लिए कुर्सी ले आता हूँ । ”

गांधीजी ने जबाब दिया “ कुर्सी की जरुरत नहीं है।  मैंने अनुशासन का उलंघन किया है इसलिए मुझे भी सजा पूरी ही भुगतनी चाहिए । जैसे देर से आने वाले और लोग बरामदे में खड़े होते है , वैसे ही मैं भी खड़ा रहूंगा । ”

अनुशासन का महत्व

जो जीवन में अनुशासन स्थापित नहीं कर सकता, वह अपने जीवन के उदेश्य तक नहीं पहुँच सकता। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उसे पराजय प्राप्त होती है। वह दर दर की ठोकरें खाते घूमता है। उसे आर्थिक चक्र में पिसना पड़ता है। सामाजिक प्रतिष्ठा खोनी पड़ती है और एक दिन इस संसार में भटकते भटकते मर जाना पड़ता है।आज प्रायः विश्व के सभी देशों में अनुशासन का अभाव हो गया है। बढ़ती हुई जनसंख्या ही इसका कारण है। नियन्त्रण का तो अभाव हो गया है। सभी संस्थाओं में चाहे वह राजकीय हो अथवा अराजकीय व्यवस्था का अभाव हो जाने से काम में दक्षता चली गई है। उत्पादन में गिरावट आ गई है। इस का मुख्या कारण केवल अनुशासनहीनता ही हो सकती है।

हर एक के जीवन में अनुशासन सबसे महत्पूर्ण चीज है। बिना अनुशासन के कोई भी एक खुशहाल जीवन नहीं जी सकता है। कुछ नियमों और कायदों के साथ ये जीवन जीने का एक तरीका है। अनुशासन सब कुछ है जो हम सही समय पर सही तरीके से करते हैं। ये हमें सही राह पर ले जाता है।

 

 

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