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चौसा का वैष्णवी दुर्गा माँ, करती है मनोकामना पूर्ण

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संजय कुमार सुमन 

शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुति।।
जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कृपालिनि।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।।
या देवि सर्वभूतेषु मातृ रूपेण संस्थिता
नमस्तस्ये नमस्तस्ये, नमस्तस्ये नमो नमः।।”की ध्वनि से वातवरण गुञ्जायमान होता है।यह मंदिर वैष्णवी दुर्गा मंदिर के नाम से चर्चित है। प्रखंड मुख्यालय चौसा स्थित दुर्गा मंदिर में मा दुर्गा के वैष्णवी के रुप में दसों भुजा की पूजा बड़े ही भव्य तरीके से होती है। यहां श्रद्धालु जो भी मनोकामना लेकर मां के दरबार में माथा टेकते हैं। माता उनकी मनोकामना अवश्य पूरी करती है। मा दुर्गा कमेटी के सदस्यों के मेहनत का ही फल है कि प्रत्येक साल मंदिर को आकर्षक तरीके से सजाया संवारा जाता है। प्रतिवर्ष यहा लाखों की तादाद में श्रद्धालु पूजा के लिए आते हैं।माँ की भक्तों पर असीम कृपा है। दुर्गा मैया के दरबार में आने वाले भक्तों की मन्नते पूरी होती है। मान्यता है कि सच्ची श्रद्धा से इस दरबार में आने वाले श्रद्धालुओं को निराश नहीं होना पड़ता है।

चौसा का दुर्गा मंदिर के लिए इमेज परिणाम

चौसा उच्च विद्यालय के ऐतिहासिक मैदान पर सन् 1963 ई० से ही पाँच दिवसीय दुर्गा मेले का भव्य आयोजन होता आ रहा है। इससे पूर्व यहां दुर्गा मंदिर ही नहीं था।यहां के लोग इससे पूर्व पड़ोसी पूर्णियां जिले के बहदूरा व अन्यत्र स्थानों पर दुर्गा मंदिर में पूजा करने व वृहद मेले का आनंद लेने को जाया करते थे। बात 1962 की है  चौसा के तत्कालीन प्रखंड विकास पदाधिकारी राजेश्वर सिंह दुर्गा मेला देखने बहदूरा गये हुए थे।लेकिन लौटने के क्रम में उनकी गाड़ी रास्ते में ही खराब हो गयी और उन्हें काफी परेशानियां उठानी पड़ी।श्री सिंह ने चौसा लौटकर यहां के स्थानीय निवासी सूरजमल मुनका,लक्खी प्रसाद अग्रवाल,पंचानंद भगत, अविनाश चन्द्र यादव, हरि पटवे,वित्तो यादव,सुखदेव यादव, विंदेश्वरी पासवान,जनता उच्च विद्यालय के तत्कालीन प्रधानाध्यापक दयानंद ठाकुर सहित दर्जनों बुद्धिजीवियों से मिल कर यहां एक दुर्गा मंदिर के स्थापना का प्रस्ताव रखा।सबों की सहमति से तथा जनता उच्च विद्यालय के प्रधान द्वारा जमीन दिये जाने के बाद सन् 1963ई० में यहां दुर्गा मंदिर का स्थापना हो पाया।तब से यहां  विधि-विधान से पूजा का आयोजन किया जा रहा है।

पांच दिन का लगता है मेला

ग्रामीण क्षेत्रों में कोई मॉल,सिनेमाघर, डिज्नीलैंड टाईप मेला आदि जैसे मनोरंजन के साधन नहीं होने की वजह से यहां मेले में भीड़ का उमड़ता है।मधेपुरा,पूर्णिया और भागलपुर जिले के बीच सीमा पर अवस्थित  चौसा का एरिया बहुत बड़ा है और आसपास में इस तरह का भव्य मेला नहीं लगता। इसलिए यहाँ पांच दिनों तक लगता है मेला।पांच दिनों तक लगने वाले मेले में दूर दूर के दुकानदार आकर अपना दुकान लगाते हैं।शायद बिहार का पहला दुर्गा मेला चौसा में लगता है जहाँ पांच दिनों का मेला लगता है।

जेवरात चढ़ाकर माता का श्रृंगार

मान्यता है कि सच्ची श्रद्धा से इस दरबार में आने वाले श्रद्धालुओं को निराश नहीं होना पड़ता है। मन्नतें पूरी होने के बाद श्रद्धालु जेवरात चढ़ाकर माता का श्रृंगार करते है। इस मंदिर की खासियत यह है कि स्थापना काल से ही यहां पांच दिवसीय भव्य मेला लगाया जाता है। मेला के दौरान हर रात नाटक का मंचन और सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। इतना ही नही मेले में कुश्ती प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है। माता वैष्णवी की दरबार में किसी भी प्रकार की बली देने की अनुमति नहीं है।

होती है मन की मुराद पूरी

मान्यता है कि माँ दुर्गा के दर्शनमात्र से ही उसकी हर मनोकामना पूरी हो जाती है। यहाँ जिनकी भी मनोकामना पूरी हुई उन्ही के द्वारा प्रतिमा बनवाने की परम्परा है। इस मंदिर में यूँ तो सालोभर श्रद्धालुओं की पूजा-अर्चना के लिए भीड़ लगी रहती है।चौसा में दुर्गा मंदिर के स्थापना से सामाजिक सदभाव एवं आपसी भाईचारा का रिश्ता मजबूत हुआ है।प्रखंड मुख्यालय में स्थापित होने के कारण यहाँ श्रद्धालु सुबह व शाम को माँ दुर्गा का आशीर्वाद लेना नहीं भूलते हैं।नवरात्रा के  दौरान संध्या में आरती के दौरान पैर रखने की जगह नहीं बचती है।मान्यता  है कि आस्था एवं निष्ठां भाव से जो भी माँ दुर्गा का स्मरण करता है उसकी मनोकामना जरुर पूरी होती है।यहाँ से कोई खाली हाथ नहीं जाता है।

बली प्रथा नही है 

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माता वैष्णवी की दरबार में किसी भी प्रकार की बली देने की अनुमति नहीं है। नवरात्रि को लेकर बड़ी संख्या में युवा वर्ग भी करते हैं उपवास।पूर्व के दिनो में नवरात्र के मौके पर घरों में बड़े-बुजुर्ग एवं महिलायें ही उपवास करती थी वहीं इन दिनों यंग इंडिया के यंग चैप्स भी पूजा अर्चना के अलावा व्रत पर विश्वास करने लगे हैं।इनमें अधिकांश फलाहार ग्रहण कर स्वयं को दस दिनों तक चलने वाली भक्ति मय महौल में शामिल रखना चाहते हैं।संध्या होते ही श्रद्धालु मंदिर में होने वाले आरती में शामिल होते हैं।मंदिरों में महिलाओ की काफी भीड़ देखी जा रही है। दिनभर उपवास में रहकर संध्या में आरती देने के बाद ही फलाहार करते हैं।मंदिर के आस पास अभी से ही अस्थायी दुकानदारों की भीड़ जमा हो गई है।बच्चों में गजब का उत्साह देखा जा रहा है।

बेल के लस्से से प्राण प्रतिष्ठा

नवरात्रा के  दौरान यहाँ बनने वाली माँ दुर्गा की मूर्ति में बेल के लस्से से प्राण प्रतिष्ठा दिया जाता है। इसे लेकर षष्ठी की संध्या में जुड़वाँ बेल फल को निमंत्रित किया जाता है । साथ ही सप्तमी को विधिवत फल सहित डाली काटकर लाया जाता है। महाअष्टमी को इसी बेल फल को चढ़ाया जाता है। नवरात्रा के दौरान प्रतिदिन संध्या और सुबह में महाआरती का आयोजन किया जाता है।जिससे सम्पूर्ण वातावरण में भक्ति का संचार होता है।

गंगा युमना की तहजीब रहती है कायम

चौसा में बनने वाले सभी ताजिया का निर्माण हिन्दू विरादरी के लोग करते हैं। ताजिया निर्माण के बाद मुहर्रम के दिन ‘या हुसैन’ के नारे लगाते हुए कन्धा देकर अधिकांश हिन्दू ही लाते हैं और कमंडल में गंगा जल लेकर रास्ते में छिडकाव करते हुए चलते हैं।इतना ही नहीं ताजिया के उपर “हिन्दू मुस्लिम एकता जिंदाबाद” का स्लोगन भी लिखते हैं।  दुर्गा पूजा में प्रतिमा विसर्जन में मुस्लिम समुदाय के लोग भी बढ़ चढ़ कर भाग लेते हैं और माथा में “जय माता की”पट्टी लगाकर प्रतिमा को कन्धा देना अपने आप को सौभाग्यशाली समझते हैं।

क्या कहते हैं दुर्गा मेला समिति के पदाधिकारी

दुर्गा पूजा समिति के अध्यक्ष अनिल मुनका ने बताया कि मंदिर की स्थापना काल के बाद से ही सभी लोगों के सहयोग से पांच दिवसीय मेला लगाया जा रहा है। सचिव सूर्य कुमार पटवे ने बताया कि एक ही मैदान पर कई बार दुर्गा पूजा पर मेला और मुहर्रम का मेला भी सौहार्दपूर्ण तरीके से लगाया गया है। कोषाध्यक्ष पुरुषोत्मम  अग्रवाल कहते हैं कि मेले में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए भव्य पंडाल, रोशनी, पेयजल सहित अन्य सारी सुविधाएं उपलब्ध रहती है।

विशेषता

चौसा दुर्गा मंदिर में अष्टमी को संधि पूजा होती है जहां काफी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। संधि पूजा यहां विशेष तरीके से आयोजित की जाती है। उस समय यहां काफी भीड़ होती है। दशमी को कलश शोभा यात्रा निकाली जाती है। आसपास के घरों में कलश स्थापना होती है सभी श्रद्धालु कलश को लेकर मंदिर पहुंचते है यहां फिर एक साथ कतारबद्ध होकर मुख्य मार्ग होते हुए  तलाब में विर्सजन की जाती हैं। प्रत्येक साल कलश शोभा यात्रा यहां का आकर्षण का केंद्र होता है।

प्रसाद वितरण

दुर्गा मंदिर में श्रद्धालुओं द्वारा चढ़ाये गये प्रसाद को घर-घर  वितरण किया जाता है। यहाँ तक की मुस्लिमों के घर में भेजा जाता है जिसे श्रद्धा के साथ आत्मसात किया जाता है।

विधि व्यवस्था

मेला में विधि व्यवस्था बनाये रखने के लिए जगह-जगह सीसीटीवी कैमरा, सादे लिबास में पुलिस बलों को तैनात रहेगा । मेला के दौरान रात में प्रशासन के अलावा स्थानीय कार्यकर्ताओं की टीम को अलग अलग जगहों पर तैनात किया जायेगा।मेला में कोई भी,कहीं भी शराब पी कर यदि हंगामा करता है तो उस पर कानूनी कार्यवाही की जाएगी। मेला के दौरान मोबाइल टाइगर पुलिस सभी जगह पर पेट्रोलिंग करेंगें।पुलिस बलों की टीम सादे लिबास में मेले के अंदर तैनात रहेंगे।

 

एसजेड हसन 

अनुमंडल पदाधिकारी,उदाकिशुनगंज 

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