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बड़े – बड़े दावे करने वाले ही भूल गए बापू का चरखा, छीना सैकड़ो का रोजगार

और तिनका - तिनका बिखर गया गांधी जी का सपना

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सतीश कुमार आलोक/त्रिवेणीगंज .सुपौल/ एक ऐसा वक्त था जब गांवों में घुसते ही चरखा की आवाज कानों में गूँजने लगती थी। एक साथ बैठकर दर्जनों महिलाएं चरखा पर सूत काटती थीं। उस समय खादी वस्त्र की मांग भी खूब थी। ग़ांधी जी का सपना भी कुछ ऐसा ही था कि लोग स्वदेशी अपनाएं लेकिन सरकार की उपेक्षा ने एक अच्छी योजना को ग्रहण लगा दिया। इससे गांव के गरीबों की रोजी-रोटी छीन ही गई ग़ांधी का सपना भी तिनका-तिनका बिखर गया। कुछ ऐसा ही हाल त्रिवेणीगंज प्रखंड क्षेत्र के लक्ष्मीनियां गांव स्थित चरखा केंद्र की हैं।

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बंद होने से सैकड़ो लोग झेल रहें हैं बेरोजगारी का दंश : प्रखंड क्षेत्र के लक्ष्मीनियां गांव में 90 के दशक में स्थापित एकमात्र चरखा केंद्र बंद होने से सैकड़ों लोग बेरोजगारी का दंश झेलने को विवश हैं, इससे जुड़े लोग बेरोजगार हो गए। हालांकि स्थापित होने के बाद रोजगार के साथ-साथ इलाके में कुटीर उद्योग की स्थापना से लोगों में खुशी का माहौल स्थापित तो हुआ। लेकिन अब इनके पुनरुद्धार की मांग जोर पकड़ने लगी हैं।

फिर से श्रीगणेश होना जरूरी : मुखिया प्रतिनिधि दीपक कामत ने बताया कि यह गांव वर्तमान सांसद दिलेश्वर कामत व पूर्व विधायक कुंभनारायण सरदार समेत स्वतंत्रता सेनानियों की जन्मस्थली हैं। उद्योग धंधे विहीन क्षेत्र में चरखा केंद्र की स्थापना की जोर शोर से चर्चा हुई। फलतः राजनीति से जुड़े कद्दावर नेताओं ने भी इसकी सराहना की। इसी कारण गांव के बुजुर्गों आज भी गांधी के विचारों के कद्रदान हैं। कहा कि संस्था का जीर्णोद्धार जरूरी हैं।

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