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आपकी सफलता में सलाहकार की भूमिका

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संजय कुमार सुमन 

sk.suman379@gmail.com

दोस्तो सलाहकार ये ऐसा सब्द है, जो कि हम सब के जीवन मे लागू होता है।ऐसा कोई व्यक्ति नही जिसे अपने जीवन मे किसी की सलाह की आवश्यकता नही पड़ी हो। कभी अपने व्यापार संबंधी या फिर अपने निजी जीवन संबंधी हमे सलाहकार की आवश्यकता पड़ती ही है ।अगर आप जीवन में सफलता के शिखर को छूना चाहते है तो आपको श्रेष्ठ सलाहकर का चयन करना होगा। सफल होने के लिए एक उपयुक्त और योग्य सलाहकार का होना जरूरी है। इस दुनिया में सलाह देने वाले बहुत सारे लोग हैं। गावं से लेकर शहर तक, घर से लेकर ऑफिस तक, गली से लेकर मैदान तक, देश से लेकर विदेश तक हर कोई सलाहकार है।किसकी सलाह माने और किसकी न माने, यह बड़ा प्रश्न है।

एक सलाहकार आपको अपने सहकर्मियों से आगे निकलने में मदद कर सकता है और पदोन्नति पाने की संभावना बढ़ा सकता है। हालांकि, अपने संरक्षक का चयन करते समय आपको सावधान रहना चाहिए। कभी-कभी एक व्यक्ति को सिर्फ सही लगता है, लेकिन अन्य मामलों में, रिश्ते शुरू करने से पहले आपको कुछ मूल्यांकन करने होंगे।सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ना चाहते हो तो बेस्ट सलाहकार चुनिए। जो सलाहकार सच का साथ देता है, सही का साथ देता है, ethics follow करता है, सकारात्मक होता हैं, आशावादी होता है, प्रोत्साहित करता है, सही सलाह देता है, मंजिल तक पंहुचाता है वह अच्छा सलाहकार होता है।

इतिहास के दो पात्र से सारी बात क्लियर हो जाती है। दुर्योधन हमेशा शकुनि से सलाह लेता था और उसका अंत हो गया। अर्जुन ने श्री कृष्ण से सलाह ली जो आज अमर हो गये। यहाँ पर सफलता और असफलता के लिए सलाहकार की महत्वपूर्ण भूमिका है। अगर दुर्योधन को श्रीकृष्ण मिल जाते और अर्जुन को शकुनि मिल जाते तो आज दुर्योधन का नाम हमारी जुबान पर होता।अगर आपका सलाहकार कोई एचीवर नहीं है। उसने सफलता का स्वाद नहीं चखा है। उसका उस क्षेत्र में ज्ञान नहीं है तो मेरी नजर में उससे सलाह लेना और उसके पास बैठना बेकार है। अपने समय की बर्बादी है। अच्छा सलाहकार अपनी दशा और दिशा दोनों बदल देता है।

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आज के समय में चाटुकार और सलाहकार दोनों दिखने में एक जैसे है और इनकी बीच में अंतर करना बहुत ही मुश्किल है, परन्तु एक अच्छे बॉस और अच्छे नेता की सबसे बड़ी खूबी उसके सही और गलत का निर्णय लेने पर निर्भर होती है। कभी चाटुकारो पर कोई इतिहास या कोई पौराणिक किताब नहीं लिखी गई, ये एक जन्मजात कला है।चाटुकार हमेशा अपने स्वाभिमान गिरवी रखकर और सलाहकार हमेशा स्वाभिमान की गरिमा को बरकार रखकर काम करता है। सलाहकार बनने के लिए आप कुछ किताबे पढ़कर और लोगो की राय से सीख सकते है। परन्तु चाटुकारिता की कला आपको सिर्फ और सिर्फ जन्म के समय से ही किसी के वरदान से मिल सकती है। आप सोच रहे होंगे की, मै इस लेख से आखिर क्या साबित करना चाहता हूँ, तो मेरा जवाब है कि मैं सिर्फ आपको आगाह करना चाहता हूँ की आज के इस समय में आप चाटुकार को सलाहकार न समझ बैठे क्योकि चाटुकारो का ये फितरत होता है की “जिधर लस्सा उधर सट” ये थाली के बैंगन होते है । सलाहकार आप को सच बताएगा,चाहे आपको ख़राब लगे या अच्चा ये आपके विवेक पर निर्भर करता है और चाटुकार आपको हमेशा रसातल की तरफ ले जाएगा।सफलता का मूलमंत्र तो परिश्रम और हुनर से ही पाया जा सकता है जिसे इतिहास लम्बे समय तक याद रखता है।

जैसा कि हम बचपन से किशोर तक बढ़ते हैं, हमें हमारे चारों ओर एक अलग तरह के लोगों की ज़रूरत होती है जिससे हम बढ़ने में मदद करें, जो वर्तमान चरण के लिए उपयुक्त व्यक्ति की खोज करें। आपके पास कई सलाहकार हो सकते हैं, लेकिन आप उस व्यक्ति की तलाश कर सकते हैं जो आपकी दूसरी मां की तरह रहें जो हमेशा आपकी भावनात्मक और नैतिक समर्थन करेंगी और जब भी आप चाहें तब आपके लिए वहां रहें। जो व्‍यक्ति स्‍वयं अपनी ग‍लतियों और कमजोरियों को जानता हैं वह अपने में अच्‍छे से सुधार कर सकता है। जब लोग हमें चोट पहुंचते हैं तो अक्‍सर हमारे अंदर नकारात्मक भावनाएं आने लगती हैं और हम सच में स्‍वयं के बारे में भूल जाते हैं। इस तरह के लोगों पर अपना समय बर्बाद करने की बजाय उन्‍हें माफ कर और अपने जीवन में आगे बढें। अपने आप पर ध्‍यान लगाएं और जीवन में सकारात्‍मक रहें। ऐसा जीवन बनाएं जिससे आप प्‍यार करते हैं या प्‍यार करें ऐसे जीवन को जैसा आपके पास हैं। आप तब तक खुद को बेहतर या खुद से प्‍यार नहीं कर सकते जबतक कि आप अपनी जीवन से प्‍यार नहीं करते। जब हम अपने जीवन से प्‍यार करने लगते हैं तो हमारे लिए सब कुछ एक चुंबक के जैसा हो जाता हैं। आप अपनी नियमित दिनचर्या बनाकर खुद को सबसे बेहतर बना सकते हैं। इसके लिए अपने जीवन के पाठ्यक्रम की योजना बनाए और जैसा आप चाहते हैं वैसा नियंत्रण करें। खुद को बेहतर बनाने के लिए इन सरल तरीकों का पालन करें।

हैंस एंडर्सन की एक कहानी है, ‘राजा के नए कपड़े।’कहानी यों है कि एक राजा नए कपड़ों का बेहद शौकीन था। इसे जान कर दो ठग उसके दरबार में आए और निवेदन किया कि हम आपके लिए एक अदभुत पोशाक बनाना चाहते हैं। उसके लिए हमें सोने- चांदी के तारों की जरूरत होगी और एक कमरा चाहिए जिसमें अपना करघा लगाएंगे। राज तो था ही शौकीन, उसने तुरंत जरूरी इंतजाम करा दिए। ठग करघा लगा कर हाथ ऐसे चलाने लगे जैसे कुछ बुन रहे हों। राजा पोशाक को बनते देखना चाहता था, पर उन्होंने बताया कि बनने के बाद ही दिखाएंगे। यह ऐसी पोशाक है जो मूर्ख को नहीं दिखेगी, आप चाहें तो अपने मंत्रियों को बीच- बीच में भेजते रहिए। मंत्री बीच-बीच में देखने आने लगे। कुछ न दिखने पर भी वे वापस आ कर खूब तारीफ करते। अगर कहते कि वहां तो कुछ भी नहीं दिखा, तो उन्हें मूर्ख समझा जाता। इधर ठग चांदी-सोना इकट्ठा करते रहे। आखिर एक दिन बताया कि पोशाक तैयार हो गई। दरबार में जा कर दोनों ठगों ने ऐसा नाटक किया मानों राजा को पहना रहे हों। पोशाक के पीछे का हिस्सा उठाने के लिये पीछे दो सेवक भी खड़े किए।

सेवकों ने भी मूर्ख समझे जाने के भय से अपने हाथ ऐसे उठा लिए मानों सचमुच पोशाक का कोई किनारा पकड़ रखा हो। नई पोशाक पहन कर राजा का जुलूूस नगर में निकला। एक सेवक राजा के सिर के ऊपर छत्र उठाए चल रहा था। सड़क के दोनों तरफ खड़ी प्रजा ऐसे दिखा रही थी, जैसे पोशाक की प्रशंसा कर रही हो। तभी एक बच्चा बोल पड़ा, ‘राजा ने तो कुछ पहना ही नहीं है।’ और भीड़ में कानाफूसी शुरू हो गई। शंका तो राजा के मन में भी थी, पर मूर्ख कहलाने के भय से वह यों चलता रहा, जैसे कुछ हुआ ही न हो। 19वीं सदी में लिखी गई यह कहानी 21वीं सदी में भी उतनी ही सच है। राजा ठग के साथ मिला हुआ नहीं था, पर नए कपड़ों के शौक ने उसे डुबो दिया। डुबोने वाले उसके अपने मंत्री थे, जो खुद को मूर्ख न दिखाने के भय से अपने राजा को शर्मिन्दा करवा रहे थे। और उस प्रजा के बारे में क्या कहा जाए जो सब कुछ जान कर भी मुंह बंद रखती है।

तुलसीदास ने मानस में लिखा है सचिव, वैद, गुरु तीन जो प्रिय बोलहिं भय आस। राज धर्म तन तीन कर होई बेगिहिनास। सलाहकार मंत्री ही नहीं पत्नी, परिवार जन, मित्र आदि कोई भी हो सकता है। वे मन को ठीक रास्ता दिखाते हैं। वैद्य या डॉक्टर शारीरिक विकार को ठीक करने की औषधि देता है। गुरु ज्ञान चक्षु खोलता है। तीनों मन, तन, ज्ञान के विकार दूर करते हैं। पर अगर ये स्वार्थवश या भय के कारण सही दिशा न दिखाएं तो इंसान का विनाश अवश्य होता है। गीता में अर्जुन श्रीकृष्ण से पूछते हैं कि मनुष्य इच्छा न होने पर भी पाप कर्म क्यों करता है ? कृष्ण बताते हैं , ‘ काम ‘ के कारण। काम से तात्पर्य है कामना या इच्छा – प्रभुता की , धन की , सुख की। यह काम जब मन , बुद्धि और इंद्रियों को काबू में कर लेता है तो व्यक्ति भ्रष्टाचारी बन जाता है। बुद्धि में चित्त को वश में करने की ताकत तो है , पर जब मनुष्य के आसपास वाले हां में हां मिलाते हों तो कमजोरी उसकी ताकत पर हावी हो जाती है। और वह राजा की तरह नंगा होते हए भी खुद को अच्छी पोशाक से ढका मान बैठता है। वैसे भी आज के आपाधापी वाले समय में हर इंसान अपना, सचिव , वैद्य और गुरु खुद को समझता है। सर्वशक्तिमान इस मनुष्य को कोई कुछ ज्ञान नहीं दे सकता। हर दिन एक नए स्कैम के मूल में शायद यही कारण है। उपाय सिर्फ कर्ता के पास ही है। वह चाहे तो बुद्धि और आत्मशक्ति के बल पर चित्त को काबू में कर काम रूपी दुश्मन को मार सकता है। तब उसे मुंह छिपाने की जरूरत नहीं रहेगी।

एक सही सलाहकार का चयन करना ही सबसे मुश्किल होता है, उसके बाद आपकी सारी समस्‍याएं आसानी से हल हो जाती हैं।
मानव संसाधनों में विशेषज्ञ, मारियो नारंजो, हमें बताता है कि एक सलाहकार वह व्यक्ति होता है जिसके पास कई अनुभव होते हैं जो साझा करने के लिए बहुत मूल्यवान हो सकते हैं, क्या कोई भावनात्मक रूप से परिपक्व है, जो जानता है कि शांत कैसे प्रसारित किया जाए, और व्यक्तियों को महत्व दें। उनके पास कोई पूर्वाग्रह नहीं है और 100 प्रतिशत  सहानुभूतिपूर्ण है।यह कोई ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जो दूसरों को सलाह, वफादार, रुचि देने के बारे में जानता हो। कोई भी जो आत्मविश्वास को प्रेरित करता है और सब से ऊपर लोगों की मदद करने का अनुभव करता है।

 

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